थोड़ी सी इस तरफ़ भी नज़र होनी चाहिए ये ज़िंदगी तो मुझ से बसर होनी चाहिए आए हैं लोग रात की दहलीज़ फाँद कर उन के लिए नवेद-ए-सहर होनी चाहिए इस दर्जा पारसाई से घटने लगा है दम मैं हूँ बशर ख़ता-ए-बशर होनी चाहिए वो जानता नहीं तो बताना फ़ुज़ूल है उस को मिरे ग़मों की ख़बर होनी चाहिए