तिलिस्म-ए-शम्स-ओ-नुजूम-ओ-क़मर से गुज़रे हैं दयार-ए-हुस्न की हर रहगुज़र से गुज़रे हैं कोई भी क़ल्ब-ओ-नज़र को असीर कर न सका हज़ार रंग के जल्वे नज़र से गुज़रे हैं हर इम्तिहान-ए-अज़ीमत से तेरे दीवाने बहुत वक़ार बड़े कर्र-ओ-फ़र से गुज़रे हैं ठहर गई हैं वहीं गर्दिशें ज़माने की बला-कशान-ए-मोहब्बत जिधर से गुज़रे हैं 'नईम' जिन से इबारत है ज़िंदगी का सुकूँ वो हादसात भी मेरी नज़र से गुज़रे हैं