सलामत इश्क़ अफ़्साने बहुत हैं जुनूँ की ख़ैर वीराने बहुत हैं ख़िरद-मंदों ने छोड़ा साथ तो क्या मिरी जाँ तेरे दीवाने बहुत हैं नहीं है गर कोई अपना तो क्या ग़म ख़ुदा का शुक्र बेगाने बहुत हैं मैं सब का मर्तबा रखता हूँ मलहूज़ कि मेरे ज़ेहन में ख़ाने बहुत हैं 'नईम' आशुफ़्ता-दिल तुम ही नहीं हो सताया जिन को दुनिया ने बहुत हैं