तिरा जमाल तिरा हुस्न कामगार रहे वो क्या करे न जिसे दिल पे इख़्तियार रहे हज़ार कसरत-ए-रा'ना ने चिलमनें डालीं ब-हर-हिजाब-ए-तअ'य्युन वो आश्कार रहे मिरी नज़र का तो क्या ज़िक्र ख़ुद बहार के फूल फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-रंगीनी-ए-बहार रहे किसी मक़ाम पे दिल को सुकूँ हो क्या मा'नी जो बेक़रार-ए-अज़ल है वो बे-क़रार रहे उसी नवाह में अहल-ए-नज़र भी मुमकिन हैं कुछ और देर सर-ए-तूर इंतिज़ार रहे तमाम फूल थे और ज़र्फ़-ए-दामन-ए-गुलचीं जो बच गए वो चराग़-ए-शब-बहार रहे मिरी निगाह में है वो हरीम-ए-ज़ेबाई कनीज़ बन के जहाँ मरियम-ए-बहार रहे ख़िज़ाँ ख़िज़ाँ हो तो दौर-ए-बहार क्या मा'नी बहार हो तो ख़िज़ाँ क्यूँ बने बहार रहे जहान-ए-हुस्न के असरार पा नहीं सकता जो इश्क़ अपनी हदों तक ही बे-क़रार रहे मिरी नज़र से वो जल्वे न रह सके मस्तूर जो ज़ेर-ए-पर्दा-ए-पैराहन-ए-बहार रहे छुड़ा चुका हूँ मैं दस्त-ए-मजाज़ से दामन हक़ीक़त अपने हिजाबों से होशियार रहे मैं मोड़ता हूँ इसी रुख़ से कारवाँ अपना कुछ और देर उफ़ुक़ पर अभी ग़ुबार रहे जुनून-ए-शौक़ में तहक़ीक़-ए-रंग-ओ-बू कैसी रहे चमन में तो दीवाना-ए-बहार रहे हैं इस तरह के ज़वाबित भी बे-क़रारी में कि तेरे साथ ज़माना भी बे-क़रार रहे वो सिर्फ़ मेरे हैं 'एहसान' मैं फ़क़त उन का है नागवार किसी को तो नागवार रहे