तिरा तज़्किरा सू-ब-सू क्यूँ करें हम मोहब्बत को बे-आबरू क्यूँ करें हम लिखी है मुक़द्दर में ना-कामयाबी करें तो ग़म-ए-आरज़ू क्यूँ करें हम अगर रंग-ओ-बू इस चमन का है फ़ानी नज़र माइल-ए-रंग-ओ-बू क्यूँ करें हम हसीनों का पास-ए-वफ़ा ग़ैर-मुमकिन हसीनों से ये आरज़ू क्यूँ करें हम अदावत ही जब हासिल-ए-दोस्ती है मोहब्बत की फिर आरज़ू क्यूँ करें हम करें क्यूँ तुम्हारे सितम की शिकायत मोहब्बत को बे-आबरू क्यूँ करें हम अगर 'शाद' हम ख़ुद ही खोए हुए हैं किसी और की जुस्तुजू क्यूँ करें हम