तिरा वजूद तिरी शख़्सियत कहानी क्या किसी के काम न आए तो ज़िंदगानी क्या हवस है जिस्म की आँखों से प्यार ग़ाएब है बदल गए हैं सभी इश्क़ के मआ'नी क्या अज़ल से जारी है ता हश्र ही चलेगा सफ़र समय के सामने दरियाओं की रवानी क्या ये मानता हूँ मैं मेहमाँ ख़ुदा की रहमत है के तुम ने देखी नहीं मेरी मेज़बानी क्या ख़ुमार-ए-इश्क़ भी उतरेगा रोज़-ए-वस्ल के बाद रहेगी अपनी भला उम्र भर जवानी क्या बिना लड़े ही जो तू मुश्किलों से हारा है रगों में तेरी लहू बन गया है पानी क्या ख़ुशी की चाह में कुछ ग़म उठाने पड़ते हैं गुलों की ख़ार नहीं करते पासबानी क्या