बे-ख़ुदी में अजब मज़ा देखा सिर्र-ए-मख़्फ़ी को बरमला देखा आप ही गुल ही आप ही बुलबुल उस को हर रंग-आश्ना देखा कहता है आप समझे भी है आप उस को हर शय में ख़ुद-नुमा देखा सूरत-ए-क़ैस मैं हुआ मजनूँ शक्ल-ए-लैला में ख़ुशनुमा देखा आप ही बन के ईसा और मुर्दा आप ही आप को जिला देखा हो बर-अफ़रोख़्ता ब-सूरत-ए-शम्अ शक्ल-ए-परवाना में जला देखा साग़र-ए-बे-ख़ुदी से हो सरशार हम ने हर शय में अब ख़ुदा देखा आलम-ए-इश्क़ में कहें क्या हम जल्वा-ए-हुस्न जा-ब-जा देखा फ़ैज़-ए-ख़ादिम सफ़ी से ऐ 'आसिम' उस को देखा जिसे न था देखा