तिरा हुस्न है वो सहबा कि कोई मिसाल क्या दे कभी तिश्नगी बुझा दे कभी तिश्नगी बढ़ा दे ये जहाँ है इक तमाशा कोई दोस्त है न दुश्मन वही आग रौशनी दे वही आशियाँ जला दे ये तरीक़-ए-दिलबरी है कि अदा-ए-दिल-नवाज़ी किसी जुर्म पर नवाज़े किसी जुर्म पर सज़ा दे अभी ज़ुल्मत-ए-ख़िरद में है वफ़ा की ताबनाकी ये चराग़ बुझ न जाए कोई इस की लौ बढ़ा दे ये क़दम क़दम पे ज़ुल्मत ये रविश रविश अँधेरे मिरी बे-ख़ुदी कहाँ है मुझे रास्ता बता दे ये तसव्वुर-ए-रिहाई रहे क्यूँ नज़र में 'गौहर' मुझे क़ैद करने वाले मिरे बाल-ओ-पर जला दे