अगर उल्टी भी हो ऐ 'मशरिक़ी' तदबीर सीधी हो

अगर उल्टी भी हो ऐ 'मशरिक़ी' तदबीर सीधी हो
मगर ये शर्त है इंसान की तक़दीर सीधी हो

समझ में आए भी क्या कहते हैं और क्या वो लिखते हैं
अगर तक़रीर सीधी हो अगर तहरीर सीधी हो

वो आ कर ख़्वाब में इक बोसा रुख़ का दे गए मुझ को
यक़ीं मुझ को नहीं इस ख़्वाब की ता'बीर सीधी हो

कजी ऐ 'मशरिक़ी' हो दूर क्यूँ कर कज-मिज़ाजों की
नहीं मुमकिन कि पुश्त-ए-आसमान-ए-पीर सीधी हो


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