तिरे बग़ैर मसाफ़त का ग़म कहाँ कम है मगर ये दुख कि मिरी उम्र-ए-राएगाँ कम है मिरी निगाह की वुसअत भी इस में शामिल कर मिरी ज़मीन पे तेरा ये आसमाँ कम है तुझे ख़बर भी कहाँ है मिरे इरादों की तू मेरी सोचती आँखों का राज़-दाँ कम है इसी से हो गए मानूस ताइरान-ए-चमन वो जो कि बाग़ का दुश्मन है बाग़बाँ कम है अगरचे शहर में फैली कहानियाँ हैं बहुत कोई भी सुनने-सुनाने को दास्ताँ कम है निगाह ओ दिल पे खुली हैं हक़ीक़तें कैसी ये दिल उदास ज़ियादा है शादमाँ कम है अब इस से बढ़ के भी कोई है पुल-सिरात अभी मैं जी रहा हूँ यहाँ जैसे इम्तिहाँ कम है