तिरे फ़िराक़ के क़िस्से तिरे विसाल के दुख भुला न पाए हम अब तक वो माह-ओ-साल के दुख तिरे बग़ैर हमें ज़िंदगी से क्या लेना यही बहुत है जो कट जाएँ तुझ कमाल के दुख हव्वा की बेटी हुई क़त्ल भाई के हाथों कोई न समझेगा हीरों के माहीवाल के दुख वो बचपना वो मोहब्बत भुलाए कब हम ने वो सूखे फूल तिरे ख़त और उस रूमाल के दुख रहे हैं आज तलक ये मिरे तआ'क़ुब में तेरे उरूज की बातें मेरे ज़वाल के दुख तुम्हारी ज़ीस्त में 'शाकिर' कमी रहेगी सदा कभी बिदेस के धक्के कभी निहाल के दुख