ये बाज़गश्त-ए-बू ऐ हवा उस गली की है नींदें उजाड़ने की सदा उस गली की है गो कि हमारा दिल भी था लुटने में पेश पेश लेकिन तबाहियों में ख़ता उस गली की है उस को ग़म-ए-हयात से मिल जाए किनारा जिस के मुक़द्दरों में दुआ उस गली की है शाम-ओ-सहर वो जल्वा-नुमा होती है ऐसे जैसे कि वो ही लड़की ख़ुदा उस गली की है