तिरे ख़याल को मौज-ए-रवाँ बनाते हुए मैं पानियों पे चली कश्तियाँ बनाते हुए मिरे वजूद के साहिल पे ख़्वाब बुनते हैं तुम्हारे हाथ शब-ए-मेहरबाँ बनाते हुए तुम्हारे साथ रिफ़ाक़त के ख़्वाब बुनती हूँ मैं ताएरों के लिए आशियाँ बनाते हुए ज़मीं से इतनी मोहब्बत है मुझ को मैं हर पल ज़मीं बनाती रही आसमाँ बनाते हुए रह-ए-वफ़ा में तिरी बेवफ़ाई की हद तक मैं धूप धूप हुई साएबाँ बनाते हुए