तिरे माथे पे जब तक बल रहा है उजाला आँख से ओझल रहा है समाते क्या नज़र में चाँद तारे तसव्वुर में तिरा आँचल रहा है तिरी शान-ए-तग़ाफ़ुल को ख़बर क्या कोई तेरे लिए बे-कल रहा है शिकायत है ग़म-ए-दौराँ को मुझ से कि दिल में क्यूँ तिरा ग़म पल रहा है तअज्जुब है सितम की आँधियों में चराग़-ए-दिल अभी तक जल रहा है लहू रोएँगी मग़रिब की फ़ज़ाएँ बड़ी तेज़ी से सूरज ढल रहा है ज़माना थक गया 'जालिब' ही तन्हा वफ़ा के रास्ते पर चल रहा है