ज़िंदगी दर्द भी दवा भी थी हम-सफ़र भी गुरेज़-पा भी थी कुछ तो थे दोस्त भी वफ़ा-दुश्मन कुछ मिरी आँख में हया भी थी दिन का अपना भी शोर था लेकिन शब की आवाज़ बे-सदा भी थी इश्क़ ने हम को ग़ैब-दान किया यही तोहफ़ा यही सज़ा भी थी गर्द-बाद-ए-वफ़ा से पहले तक सर पे ख़ेमा भी था रिदा भी थी माँ की आँखें चराग़ थीं जिस में मेरे हम-राह वो दुआ भी थी कुछ तो थी रहगुज़र में शम्-ए-तलब और कुछ तेज़ वो हवा भी थी बेवफ़ा तो वो ख़ैर था 'अमजद' लेकिन उस में कहीं वफ़ा भी थी