तीरगी शो'ला-ए-नफ़रत को हवा देती है रौशनी ज़ौक़-ए-यक़ीं फ़िक्र-ए-रसा देती है तीरगी बाइस-ए-आज़ार मुसाफ़िर के लिए रौशनी शोख़ी-ए-रफ़्तार-ए-सबा देती है तीरगी सरहद-ए-औहाम से आगे न बढ़ी रौशनी क़र्या-ए-शब में भी सदा देती है तीरगी रंग-ए-अलामत के सिवा कुछ भी नहीं रौशनी अक्स-ए-शफ़क़ रंग-ए-हिना देती है तीरगी जहल को रखती है दिल-ओ-जाँ की तरह रौशनी इल्म की राहों का पता देती है मुख़्तसर ये कि शब-ए-ग़म की सहर होने तक रौशनी नूर का इक जाल बिछा देती है रौशनी सूरत-ए-पैग़ाम-ए-सहर है 'अख़्तर' रौशनी ही सिला-ए-अह्द-ए-वफ़ा देती है