तिरी आँखों का मंज़र सामने है मैं प्यासा हूँ समुंदर सामने है अना बढ़ने नहीं देती है आगे मिरे रस्ते का पत्थर सामने है ख़यालों से है कोसों दूर लेकिन निगाहों में वो अक्सर सामने है मैं ख़ुद से रोज़ होता हूँ बग़ल-गीर मिरा अपना ही पैकर सामने है न जल्वा है न आईना है कोई ये हैरत है वो क्यूँकर सामने है मसाफ़त है इक आईना-नज़र का कहीं जाऊँ मिरा घर सामने है खिला है ऐ 'ज़िया' नज़रों में इक फूल कोई सूरत बदल कर सामने है