तिरी दिलबरी सलामत मिरे ग़म का बोल-बाला मिरी आतिश-ए-दरूँ से तिरे घर में है उजाला ये मिरा ख़ुलूस-ए-बातिन वो रक़ीब की नुमाइश यहाँ आँसुओं के मोती वहाँ मोतियों की माला तिरा हुस्न फ़ित्ना-सामाँ मिरा इश्क़ वालिहाना ये जुनूँ तो वो क़यामत पड़ा आफ़तों से पाला मिरी ख़ामुशी जहालत मिरा बोलना बग़ावत मिरे ज़ौक़-ए-आगही ने मुझे इम्तिहाँ में डाला तो ये मै-कदा है नासेह यहाँ ख़ुद सँभल के रहियो यहाँ हर रिवाज उल्टा यहाँ हर बशर निराला वही तेरा आस्ताना वही ग़म-नसीब 'साबिर' तू ने बारहा अगरचे बड़ी बे-रुख़ी से टाला