तिरी गाली मुझ दिल को प्यारी लगे दुआ मेरी तुझ मन में भारी लगे तदी क़द्र-ए-आशिक़ की बूझे सजन किसी साथ अगर तुझ कूँ यारी लगे भुला देवे वो ऐश-ओ-आराम सब जिसे ज़ुल्फ़ सीं बे-क़रारी लगे नहीं तुझ सा और शोख़ ऐ मन हिरन तिरी बात दिल को न्यारी लगे भवाँ तेरी शमशीर ज़ुल्फ़ाँ कमंद पलक तेरी जैसे कटारी लगे हुए सर्व बाज़ार दामन का देख अगर गर्द-ए-दामन कनारी लगे न जानूँ तू साक़ी था किस बज़्म का नयन तेरी मुझ कूँ ख़ुमारी लगे वही क़द्र 'फ़ाएज़' की जाने बहुत जिसे इश्क़ का ज़ख़्म कारी लगे