तिरी ही शक्ल के बुत हैं कई तराशे हुए न पूछ का'बा-ए-दिल में भी क्या तमाशे हुए हमारी लाश को मैदान-ए-इश्क़ में पहचान बुझी हुई सी हैं आँखें तो दिल ख़राशे हुए ब-वक़्त-ए-वस्ल कोई बात भी न की हम ने ज़बाँ थी सूखी हुई होंट इर्तिआ'शे हुए वो कैसे बात को तोलेंगे और बोलेंगे जो पल में तोले हुए और पल में माशे हुए मज़ाक़ छोड़ बता ये कि मुझ से क्या पर्दा तिरे नुक़ूश हैं सारे मिरे तलाशे हुए मैं तेरे शहर से निकला था ऐन उस लम्हा तिरे निकाह पे तक़्सीम जब बताशे हुए