तिरी क़ुर्बतें हैं सकूँ जान-ए-जानाँ वगर्ना मोहब्बत जुनूँ जान-ए-जानाँ जो सोचूँ मैं हालात अपने वतन के रगों में से रिसता है ख़ूँ जान-ए-जानाँ अभी तक घनेरी सी चादर में हूँ मैं किसी ज़ुल्फ़ का है फ़ुसूँ जान-ए-जानाँ फ़साने मोहब्बत के ज़िंदा रहेंगे मैं लिक्खूँ न चाहे लिखूँ जान-ए-जानाँ तुम्हारी मोहब्बत का अब भी क़सम से मिरे चार सू है फ़ुसूँ जान-ए-जानाँ ख़रीदार तू हो तो ख़्वाहिश है मेरी कि यूसुफ़ के तरह बिकूँ जान-ए-जानाँ ज़माना तो कहता है कहता रहेगा ये यूँ है ये यूँ है ये यूँ जान-ए-जानाँ