तिरी नज़र का तीर जब जिगर के पार हो गया By Ghazal << आज दिल बे-क़रार है मेरा आज दिस्ता है हाल कुछ का क... >> तिरी नज़र का तीर जब जिगर के पार हो गया ग़ज़ल-परस्त बन गया ग़ज़ल से प्यार हो गया अभी अभी थी दोस्ती अभी फ़ज़ा बदल गई किसी ने तान ली कमाँ कोई शिकार हो गया बिगाड़ना सँवारना है वक़्त के मिज़ाज पर जो ठोकरों में था वो अब गले का हार हो गया Share on: