तिरी निगाह-ए-तलत्तुफ़ ने फ़ैज़ आम किया ख़िरद के शहर के सब वहशियों कूँ राम किया अगरचे तीर-ए-पलक ने किया था दिल बर्मा वले निगाह के ख़ंजर ने ख़ूब काम किया तिरे सलाम के धज देख कर मिरे दिल ने शिताब आ कि मुझे रुख़्सती सलाम किया न जानूँ इश्क़ की बिजली किधर सीं आई है कि मुझ जिगर के खुले कूँ जला तमाम किया उसी के हाथ में है ख़ातम-ए-सुलैमानी नगीन-ए-दिल पे जो नक़्श उस सनम का नाम किया मुझे निगाह-ए-तग़ाफ़ुल रक़ीब पर अल्ताफ़ अदा-ए-मस्लहत-आमेज़ ने ग़ुलाम किया ऐ आफ़्ताब तिरी ज़ुल्मत-ए-जुदाई में 'सिराज' आह-ए-सहर कूँ चराग़-ए-शाम किया