तिरी रहमतों के दयार में तिरे बादलों को पता नहीं अभी आग सर्द हुई नहीं अभी इक अलाव जला नहीं मिरी बज़्म-ए-दिल तो उजड़ चुकी मिरा फ़र्श-ए-जाँ तो सिमट चुका सभी जा चुके मिरे हम-नशीं मगर एक शख़्स गया नहीं दर-ओ-बाम सब ने सजा लिए सभी रौशनी में नहा लिए मिरी उँगलियाँ भी झुलस गईं मगर इक चराग़ जला नहीं ग़म-ए-ज़िंदगी तिरी राह में शब-ए-आरज़ू तिरी चाह में जो उजड़ गया वो बसा नहीं जो बिछड़ गया वो मिला नहीं जो दिल-ओ-नज़र का सुरूर था मिरे पास रह के भी दूर था वही एक गुलाब उमीद का मिरी शाख़-ए-जाँ पे खिला नहीं पस-ए-कारवाँ सर-ए-रहगुज़र मैं शिकस्ता-पा हूँ तो इस लिए कि क़दम तो सब से मिला लिए मिरा दिल किसी से मिला नहीं मिरा हम-सफ़र जो अजीब है तो अजीब-तर हूँ मैं आप भी मुझे मंज़िलों की ख़बर नहीं उसे रास्तों का पता नहीं