तिरी तलाश के मारों की नींद पूरी हो ज़रा तू बैठ कि पैरों की नींद पूरी हो विसाल करके जुदाई का नाम तक न रहे फिर इतना जागें कि बरसों की नींद पूरी हो ख़ुदा तो चाहेगा ख़्वाबों में सब रहें मसरूफ़ ख़ुदा तो चाहेगा बंदों की नींद पूरी हो तिरा बिछड़ना कि बस जागने की दूरी पे है तो कैसे ख़ौफ़ के मारों की नींद पूरी हो ये रोटी पानी का झगड़ा है और लोगों का मैं चाहता हूँ कि लोगों की नींद पूरी हो उसी की मर्ज़ी कि कितनों का चौकीदार रहे उसी की मर्ज़ी कि जितनों की नींद पूरी हो जो एक जागे तो दोनों को इज़्तिराब रहे जो एक सोए तो दोनों की नींद पूरी हो