ज़िंदगी है अजल तो तू भी नहीं सोचता हूँ अटल तो तू भी नहीं तेरे होते भी सब ख़राब ही था और फिर आज-कल तो तू भी नहीं ऐ शगूफ़ों में रंग भरते शख़्स इस उदासी का हल तो तू भी नहीं जो तिरी जुस्तुजू में छोड़ दिया उस का नेमुल-बदल तो तू भी नहीं मुझ को ये जान कर उदासी हुई कुछ मसाइल का हल तो तू भी नहीं मैं भी 'ज़ोरेज़' कोई ज़मज़म हूँ और फिर गंगा-जल तो तू भी नहीं