तिरी तिरछी नज़र का तीर है मुश्किल से निकलेगा दिल उस के साथ निकलेगा अगर ये दिल से निकलेगा शब-ए-ग़म में भी मेरी सख़्त-जानी को न मौत आई तिरा काम ऐ अजल अब ख़ंजर-ए-क़ातिल से निकलेगा निगाह-ए-शौक़ मेरा मुद्दआ तू उन को समझा दे मिरे मुँह से तो हर्फ़-ए-आरज़ू मुश्किल से निकलेगा कहाँ तक कुछ न कहिए अब तो नौबत जान तक पहुँची तकल्लुफ़-बर-तरफ़ ऐ ज़ब्त नाला दिल से निकलेगा तसव्वुर क्या तिरा आया क़यामत आ गई दिल में कि अब हर वलवला बाहर मज़ार-ए-दिल से निकलेगा न आएँगे वो तब भी दिल निकल ही जाएगा 'फ़ानी' मगर मुश्किल से निकलेगा बड़ी मुश्किल से निकलेगा