मकान देखे मकीं देखे ला-मकाँ देखा कहाँ कहाँ तुझे ढूँडा कहाँ कहाँ देखा ज़रा जो हम ने उन्हें आज मेहरबाँ देखा न हम से पूछिए क्या रंग-ए-आसमाँ देखा न पहुँचे बाम-ए-क़फ़स तक कभी मिरे नाले वो बर्क़ होगी जिसे गर्द-ए-आशियाँ देखा झुका झुका है तो हाँ गिर पड़े मिरे सर पर यही न यास से था सू-ए-आसमाँ देखा बहुत से रिंद भी देखे बहुत से ज़ाहिद भी उन्हें तो पीर हमेशा इन्हें जवाँ देखा अब आरज़ूएँ बर आईं कि ख़ाक में मिल जाएँ ख़ुदा ने दिन ये दिखाया उन्हें जवाँ देखा ये जानते हैं कि दिल ख़ाक हो गया जल कर न आग देखी न उठते हुए धुआँ देखा बहुत ही रोए गले मिल के एक एक से हम लुटा हुआ जो कोई हम ने कारवाँ देखा क़फ़स में रोके सितम तेरे देख लें सय्याद चमन में रह के बहुत लुत्फ़-ए-बाग़बाँ देखा 'रियाज़' ख़ाक-ए-दर-ए-मय-कदा था जीते-जी फ़ना के बा'द उसे ख़ुल्द-आशियाँ देखा