तिरी यादों से दिल फ़रोज़ाँ करेंगे फिर इस ग़म-कदे में चराग़ाँ करेंगे ज़रा हज़रत-ए-दिल की जुरअत तो देखो ये नज़्ज़ारा-ए-हुस्न-ए-जानाँ करेंगे ज़माना जो आतिश-फ़िशाँ है तो क्या ग़म हम आतिश-कदे को गुलिस्ताँ करेंगे चले तो ज़रा दौर-ए-जाम-ए-मोहब्बत फ़रिश्ते भी तक़लीद-ए-इंसाँ करेंगे सलामत-रवी जुर्म समझेगी दुनिया किसी से अगर ज़िक्र-ए-तूफ़ाँ करेंगे जो आसानियों को भी मुश्किल बना दें वो क्या मेरी मुश्किल को आसाँ करेंगे