तिरी यलग़ार से दुनिया भी दहल सकती है तू बदल जाए तो हर चीज़ बदल सकती है एक इफ़रीत कि शो'लों को निगल सकती है बंद है न्याम में तलवार निकल सकती है तेरे आ'माल ज़माने में हैं ऐसे प्यारे जिन से अस्लाफ़ की पगड़ी भी उछल सकती है दीन-ए-हक़ के लिए नामूस-ए-शरीअ'त के लिए ये वो मिल्लत है कि शो'लों में भी चल सकती है अस्करी क़ौम है फ़ितरत में जदल बाक़ी है इस को छेड़ो न ये अंदाज़ बदल सकती है अपनी तारीख़ के औराक़ खँगालो 'सानी' अब कहाँ क़ौम खिलौनों से बहल सकती है