तिश्ना-दहन को प्यास की शिद्दत न मार दे ऐ शख़्स मुझ को तेरी ज़रूरत न मार दे होता है जिस तरह से मुकाफ़ात का अमल तुझ को हमारे बा'द मोहब्बत न मार दे तू बीच में न आ ये तिरा मसअला नहीं तेरी ये गुफ़्तुगू मिरी हिम्मत न मार दे जलने दो उन को और उन्हें देखते रहो इन मुनकिरों को बुग़्ज़-ए-विलायत न मार दे ऐसा न हो कि हम न मिलें उम्र भर कहीं फिर सोच लो कहीं हमें फ़ुर्क़त न मार दे कहते हैं लोग सब्र का होता है मीठा फल ठहरो रुको सुनो तुम्हें उजलत न मार दे बस इस लिए मैं तेरे बराबर न आ सका मैं सोचता था मुझ को ये शोहरत न मार दे जाता ज़रूर तूर पे मैं देखने उसे फिर डर गया कहीं मुझे हैरत न मार दे हर शख़्स अपना होता नहीं 'जौन' जान ले तुझ को कहीं लिहाज़-ओ-मुरव्वत न मार दे