तिश्ना-ए-तकमील है वहशत का अफ़्साना अभी वाक़िफ़-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ है तेरा दीवाना अभी क्यूँ न हो क़ुर्बान शम्-ए-हुस्न के जल्वों पे दिल अपने जल्वों से है ना-वाक़िफ़ ये परवाना अभी गुल चराग़-ए-दैर है ख़ामोश है शम-ए-हरम साक़िया रौशन है तेरे दम से मय-ख़ाना अभी या तजल्ली तूर की है ख़ुद हिजाब-अंदर-हिजाब या नहीं ज़ौक़-ए-नज़र अपना कलीमाना अभी दूर है मंज़िल मिरी इक जाम ऐ पीर-ए-मुग़ाँ राह में आएँगे का'बा और बुत-ख़ाना अभी दास्ताँ 'मंसूर' की बे-कैफ़ हो सकती नहीं मुद्दतों दोहराएगी दुनिया ये अफ़्साना अभी