कम्बख़्त दिल ने इश्क़ को वहशत बना दिया वहशत को हम ने बाइस-ए-रहमत बना दिया क्या क्या मुग़ालते दिए दौर-ए-जदीद ने नफ़रत को प्यार प्यार को नफ़रत बना दिया हम ने हज़ार फ़ासले जी कर तमाम शब इक मुख़्तसर सी रात को मुद्दत बना दिया ऐ जान अपने दिल पे मुझे नाज़ क्यूँ न हो इक ख़्वाब था कि जिस को हक़ीक़त बना दिया मख़्सूस हद पे आ गई जब बे-रुख़ी तिरी उस हद को हम ने हासिल-ए-क़िस्मत बना दिया