तिश्नगी अच्छी नहीं रखना बहुत रौज़न-ए-गुल से उसे तकना बहुत देख कर जिस शख़्स को हँसना बहुत सर को इस के सामने ढकना बहुत जिस की आँखों में न झाँका जाएगा इस की ही तहरीर को पढ़ना बहुत मौजा-ए-रेग-ए-रवाँ है ज़ेर-ए-आब अपनी हस्ती देख कर बढ़ना बहुत बर्फ़ की मानिंद जीना उम्र भर रेत की सूरत मगर तपना बहुत उम्र भर की बंदिशें ख़्वाब-ओ-ख़याल दो क़दम भी साथ है चलना बहुत ख़स्तगी 'नाहीद' बन जाए न जुर्म अपनी हस्ती देख कर बढ़ना बहुत