तिश्नगी और बढ़ाएँगे चले जाएँगे आप आए भी तो आएँगे चले जाएँगे मुहतमिम हम ने सर-ए-बज़्म कहाँ रहना है जब वो उठ कर चले जाएँगे चले जाएँगे वक़्त कम है कि ग़म-ए-ज़ीस्त पस-ए-पुश्त किए जश्न ग़म-ख़्वार मनाएँगे चले जाएँगे जब भी हम ख़ाना-ब-दोशों से तू उकताएगा ज़िंदगी सर पे उठाएँगे चले जाएँगे लोग ढूँडेंगे निकल कर हमें उन गलियों में सिर्फ़ आवाज़ लगाएँगे चले जाएँगे हम से दीवानों की आदत है मिलेंगे जब भी मिल के रोएँगे रुलाएँगे चले जाएँगे ये तिरी ख़ाम-ख़याली है कि हम महफ़िल में मुँह उठाए चले आएँगे चले जाएँगे ज़िंदगी बज़्म-ए-सुख़न है जिसे सुनते सुनते अपने हिस्से का सुनाएँगे चले जाएँगे ये तो सीखा ही नहीं आप की सोहबत से कि आप जब चराग़ों को बुझाएँगे चले जाएँगे सर-फिरे ऐसे हैं 'शाहिद' कि ग़ुरूर-ए-हस्ती तुम को मिट्टी में मिलाएँगे चले जाएँगे