तिश्नगी बाक़ी रहे दीवानगी बाक़ी रहे रंज-ओ-ग़म है इस लिए ता-कि ख़ुशी बाक़ी रहे ज़ख़्म अगर भर जाएगा तो भूल जाऊँगा उसे ये दुआ दो ज़ख़्म-ए-दिल की ताज़गी बाक़ी रहे क़ुर्बतें भी दूरियों का बन गईं अक्सर सबब इस लिए बेहतर है उन की बे-रुख़ी बाक़ी रहे ठहर जाना मौत है और चलते रहना ज़िंदगी ज़िंदगी बाक़ी रहे आवारगी बाक़ी रहे रौशनी होगी तो कितने चेहरे होंगे बे-नक़ाब कह दो ये 'अफ़रोज़' से कि तीरगी बाक़ी रहे