तिश्ना-लब हूँ मुद्दतों से देखिए कब दर-ए-मय-ख़ाना-ए-कौसर खुले ताक़त-ए-परवाज़ ही जब खो चुकी फिर हुआ क्या गर हवा में पर खुले चाक कर सीने को पहलू चीर डाल यूँ ही कुछ हाल-ए-दिल-ए-मुज़्तर खुले रात तलछट तक न छोड़ी तब कहीं राज़-हा-ए-बादा-ओ-साग़र खुले लो वो आ पहुँचा जुनूँ का क़ाफ़िला पाँव ज़ख़्मी ख़ाक मुँह पर सर खुले हूँ जो कसरत ही के क़ाइल उन पे क्या राज़-ए-फ़तह-ए-सिब्त-ए-पैग़म्बर खुले रू-नुमाई के लिए लाया हूँ जाँ अब तो शायद चेहरा-ए-अनवर खुले अब तो कश्ती के मुआफ़िक़ है हवा नाख़ुदा क्या देर है लंगर खुले ये नज़र-बंदी तो निकली रद्द-ए-सेहर दीदा-हा-ए-होश अब जा कर खुले अब कहीं टूटा है बातिल का तिलिस्म हक़ के उक़दे अब कहीं हम पर खुले अब हुआ है मा-सिवा का पर्दा फ़ाश मअरिफ़त के अब कहीं दफ़्तर खुले फ़ैज़ से तेरे ही ऐ क़ैद-ए-फ़रंग बाल ओ पर निकले क़फ़स के दर खुले जीते जी तो कुछ न दिखलाया मगर मर के 'जौहर' आप के जौहर खुले