हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता लफ़्ज़ मा'ना को पा नहीं सकता इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता होश आरिफ़ की है यही पहचान कि ख़ुदी में समा नहीं सकता पोंछ सकता है हम-नशीं आँसू दाग़-ए-दिल को मिटा नहीं सकता मुझ को हैरत है उस की क़ुदरत पर अलम उस को घटा नहीं सकता