तिश्ना-लबी ने जब भी ज़ौक़-ए-अमल दिया है रिंदों ने मय-कदे का साक़ी बदल दिया है दुनिया है इस की शाहिद इस शहर-ए-बे-अमाँ ने जिस में अना समाई वो सर कुचल दिया है खिलते रहे हैं जो गुल बाद-ए-ख़िज़ाँ की शह पर दस्त-ए-सबा ने बढ़ कर उन को मसल दिया है सब ने सुनी है जिस में अस्र-ए-रवाँ की धड़कन 'मंज़ूर' हम ने ऐसा साज़-ए-ग़ज़ल दिया है