तो फिर क्या राह-ए-हस्ती में कोई नाज़ुक मक़ाम आया ज़बाँ पर आज ये बे-साख़्ता क्यों उन का नाम आया कहाँ तक एहतियात-ए-सज्दा होती राह-ए-उल्फ़त में कहीं तूर-ए-नज़र आया कहीं दिल का मक़ाम आया जुदा मक़्सद जुदा मशरब जुदा राहें जुदा मंज़िल न दुनिया मेरे काम आई न मैं दुनिया के काम आया करिश्मा-साज़ी-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का पूछना क्या है तुलू-ए-सुब्ह से पहले मुझे पैग़ाम-ए-शाम आया जहाँ पर फूल खिलते थे वहाँ काँटे हुए पैदा ये किस के दस्त-ए-क़ुदरत में गुलिस्ताँ का निज़ाम आया ख़ुदा मालूम वो हैं या है नैरंगी तसव्वुर की नज़र के सामने इक पैकर-ए-हुस्न-ए-तमाम आया हयात-ओ-मौत को ये कश्मकश देखी नहीं जाती अजल इस सम्त आई उस तरफ़ उन का पयाम आया 'ख़लिश' फ़ितरत की गुल-अफ़्शानीयाँ मेरे ही दम तक थीं न फिर कोई नवेद आई न फिर कोई पयाम आया