ऐसी क्या बात सर-ए-शाम निभानी होगी दास्ताँ ग़म की भी हँस हँस के सुनानी होगी जो हक़ीक़त मिरे अरमानों का उन्वान रही अहल-ए-दुनिया के लिए सिर्फ़ कहानी होगी यूँ तो हर दिल है मोहब्बत का तमन्नाई यहाँ फिर भी क्यों दिल से मोहब्बत ही भुलानी होगी ग़म उभर आएगा चेहरे पे मिरे बन के धुआँ तेरी आँखों को यही बात छुपानी होगी मैं 'ख़लिश' हूँ तो मिरा फूलों से रिश्ता क्या है फिर भी दुनिया मुझे फूलों से सजानी होगी