तोड़ दी उस ने वो ज़ंजीर ही दिलदारी की और तशहीर करो अपनी गिरफ़्तारी की हम तो सहरा हुए जाते थे कि उस ने आ कर शहर आबाद किया नहर-ए-सबा जारी की हम भी क्या शय हैं तबीअत मिली सय्यारा-शिकार और तक़दीर मिली आहू-ए-तातारी की इतना सादा है मिरा माया-ए-ख़ूबी कि मुझे कभी आदत न रही आइना-बरदारी की मिरे गुम-गश्ता ग़ज़ालों का पता पूछता है फ़िक्र रखता है मसीहा मिरी बीमारी की उस के लहजे में कोई चीज़ तो शामिल थी कि आज दिल पे इस हर्फ़-ए-इनायत ने गिराँ-बारी की