तोड़ने गुल को जो वो शोख़-ए-तरहदार झुका उन के क़दमों पे सर-ए-बुलबुल-ए-गुलज़ार झुका देख ली तेरे नशे में जो गुलाबी आँखें आँख को शर्म से ले नर्गिस-ए-बीमार झुका उस की पा-पोश की चमकी जो दम-ए-सुब्ह किरन चूमने उस के क़दम मतला-ए-अनवार झुका दौर-ए-साक़ी में मिरे झुकने लगा एक पे एक जाम साग़र पे है साग़र पे है वो यार झुका तुम ने 'तनवीर' लिखा ऐसा जवाब-ए-'सौदा' जिंस-ए-मज़मूँ पे हर इक बन के ख़रीदार झुका