तू अगर बे-नक़ाब हो जाता तो हर इक फ़ैज़याब हो जाता तारे सब माहताब हो जाते माहताब आफ़्ताब हो जाता लिखते दीवान में जो वस्फ़-ए-रुख़ हर वरक़ आफ़्ताब हो जाता तू बताता जो राह-ए-मय-ख़ाना शैख़ कार-ए-सवाब हो जाता इम्तिहाँ लेते हैं वो मक़्तल में पहले मैं इंतिख़ाब हो जाता थी हवा-ए-ख़ुदी भरी इस में क्यूँ न बे-ख़ुद हबाब हो जाता जाग उठते नसीब आशिक़ के यार अगर मस्त-ए-ख़्वाब हो जाता चैन से सोते फ़र्श-ए-राहत पर जो ख़याल उन का ख़्वाब हो जाता शब-ए-वा'दा अगर न आते आप ख़्वाब भी मुझ को ख़्वाब काश ऐ दर्द-ए-इश्क़ तेरे लिए दिल मिरा इंतिख़ाब हो जाता यारब उस बुत को शोख़ियाँ आतीं दूर उस से हिजाब हो जाता चाल चलते जो तुम क़यामत की फ़ित्ना ही हम-रिकाब हो जाता अपना नाख़ुन तराशता वो ख़ुद मह-ए-नौ का जवाब हो जाता जंग होती अदू से ऐ 'साबिर' और मैं फ़त्ह-याब हो जाता