तू भली बात से ही मेरी ख़फ़ा होता है आह क्या चाहना ऐसा ही बुरा होता है तेरे अबरू से मिरा दिल न छुटेगा हरगिज़ गोश्त नाख़ुन से भला कोई जुदा होता है मैं समझता हूँ तुझे ख़ूब तरह ऐ अय्यार तेरे इस मक्र के इख़्लास से क्या होता है है कफ़-ए-ख़ाक मिरी बस-कि तब-ए-इश्क़ से गर्म पाँव वाँ जिस का पड़े आबला-पा होता है दिल मिरा हाथ से जाता है करूँ क्या तदबीर यार मुद्दत का मिरा हाए जुदा होता है राहबर मंज़िल-ए-मक़्सूद को दरकार नहीं शौक़-ए-दिल अपना ही याँ राह-नुमा होता है ग़ैर हरजाई मिरा यार लिए जाता है मुझ पे 'ताबाँ' ये सितम आज बड़ा होता है