तू ही है मिरी ये बूद-ओ-बक़ा तू और नहीं मैं और नहीं देखा जो अपने को तू ही मिला तू और नहीं मैं और नहीं तू ही अदम का था पर्दा-नशीं मिरे दिल के मकाँ का है तू ही मकीं मिरी हस्ती है सब ये ज़ुहूर तिरा तू और नहीं मैं और नहीं मिरे होश-रुबा ने है फ़ज़्ल किया मुझे राज़-ए-ख़ुदाई अपना दिया मिरी रूह में रूह मिला के कहा तू और नहीं मैं और नहीं कहता है ये मुझ से मेरा सनम कि हैं एक ही ये दोनों हुदूस-ओ-क़िदम कुछ फ़र्क़ नहीं इस में है ज़रा तू और नहीं मैं और नहीं 'मर्दान-सफ़ी' मिरा माह-ए-लक़ा है मेरी ही शक्ल में जल्वा-नुमा मुझ से ये कहता है कह दे खुला तू और नहीं मैं और नहीं