तू जब मेरे घर आया था मैं इक सपना देख रहा था तेरे बालों की ख़ुशबू से सारा आँगन महक रहा था चाँद की धीमी धीमी ज़ौ में साँवला मुखड़ा लौ देता था तेरी नींद भी उड़ी उड़ी थी मैं भी कुछ कुछ जाग रहा था मेरे हाथ भी सुलग रहे थे तेरा माथा भी जलता था दो रूहों का प्यासा बादल गरज गरज कर बरस रहा था दो यादों का चढ़ता दरिया एक ही सागर में गिरता था दिल की कहानी कहते कहते रात का आँचल भीग चला था रात गए सोया था लेकिन तुझ से पहले जाग उठा था