तू जो नज़्ज़ारा करे पस्ती का By Ghazal << ज़िंदगी ज़र्द ज़र्द चेहरो... सुना के रंज-ओ-अलम मुझ को ... >> तू जो नज़्ज़ारा करे पस्ती का रंग उड़ जाए तिरी हस्ती का तीरगी और बढ़ी आँखों की इक चराग़ और बुझा बस्ती का इश्क़ पर ज़ोर कहाँ चलता है कब ये सौदा है ज़बरदस्ती का दास्ताँ बन के रहा जाता है एक इक फ़र्द मिरी बस्ती का Share on: