तू कमसिन और ये हंगामा-हा-ए-शहर-ए-इश्क़ ख़ुदा करे कि तुझे रास आए शहर-ए-इश्क़ दो दिल मिले थे सर-ए-साहिल-ए-तमन्ना कहीं और उन से रक्खी गई थी बिना-ए-शहर-ए-इश्क़ कोई भी सुनता नहीं इल्तिजा-ए-अहल-ए-दिल कहाँ चले गए दर्द-आश्ना-ए-शहर-ए-इश्क़ हमें भी आ ही गया 'राज़' दर-ब-दर फिरना हमें भी लग गई आख़िर हवा-ए-शहर-ए-इश्क़