तू ख़ुश-नसीब है हर शख़्स है असीरों में लिखा हुआ है तिरे हाथ की लकीरों में जो हो सके तो मुझे भी कहीं तलाश करो मैं खो गया हूँ ख़यालात के जज़ीरों में ये इंक़िलाब-ए-ज़माना नहीं तो फिर क्या है अमीर-ए-शहर जो कल था वो है फ़क़ीरों में हमें ये चाहिए हुशियार रहबरों से रहें कि ज़हर भी हैं लगे मस्लहत के तीरों में सड़क पे हो गया फिर कोई हादिसा शायद इक इज़्तिराब सा लगता है राहगीरों में ख़ुलूस-ए-फ़न ही तो 'नादिर' का है कि शामिल है अब उस का नाम भी शहर-ए-सुख़न के मीरों में